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जयसंकर प्रसाद जीवन परिचय

        जयसंकर प्रसाद 


जयसंकर प्रसाद जी का जन्म काशी में सन 1890 ई० में हुआ था।  काशी में उनका परिवार सुँघनी साहू के नाम से प्रसिद्ध था।  इसका कारण यह था की उनके यहाँ तम्बाकू का व्यापार होता था। प्रसाद जी के पितामाह का शिवरतन साहू और पिता का नाम देवी प्रसाद था।  प्रसाद जी के पितामाह शिव के परम भक्त थे।  उनके पिता भी उदार और सहित्य प्रेमी थे। 

प्रसाद जी का बालकल्या सुख के साथ  व्यतीत हुआ उन्होंने बाल्यावस्था में ही अपनी माता के साथ धाराक्षेत्र, ओकारेश्वर, उज्जैन आदि तीर्थो को यात्रा की।  यात्रा लौटने के दौरान के पश्चात प्रसाद जी  पिता का मित्यु हो गया। पिता की मित्यु हो जाने के बाद चार वर्ष बाद उनके माता का भी 
देहांत हो गया। 

 प्रसाद जी की पालन पोषण और शिक्षा - दिक्षा का प्रबन्ध उनके बड़े भाई सम्भुरतन जी ने किया और प्रसाद जी का नाम क्वींस कॉलेज में लिखवाया गया, लेकिन स्कूल के पढाई में उनका मन न लगा इसलिए उनकी शिक्षा का प्रबंध घर पर ही किया गया।  घर पर ही वे योग्य शक्षकों से अंग्रेजी और संस्कृत का अध्यन करने लगे। प्रसाद जी को प्रारंभ से हि साहित्य के प्रति अनुराग था। 

वे हमेशा सहित्यिक पुस्तके पढ़ा करते थे और अवसर मिलने पर भी कविताये भी लिखा करते थे। पहले तो उनके बड़े भाई उनकी काव्य - रचना में बाधा डालते थे, परन्तु जब उन्होंने देखा की प्रसाद जी का मन काव्य रचना में  लगता है, उन्होंने पूरी तरह से स्वतन्त्र छोड़  दिया। इन्ही दिनों उनके बड़े भाई सम्भुरतन जी का मित्यु हो गया। इसके बाद  प्रसाद जी के हिर्दय को गहरा आघात लगा।  उनकी  आर्थिक स्थिति बिगड़ गई तथा व्यपार भी समाप्त हो गया।  प्रसाद जी के जीवन में संघर्ष और चिंताओं के कारण उनका स्वास्थ बिगड़ गया  और संन 1937 ई० की 25 नवंबर को जयशंकर प्रसाद जी का  देहांत हो गया।  
 प्रसाद जी  नाटक, कहानी, उपन्यास, निबन्ध, और काव्य के चित्र में अपनी योग्यता का परिचय दिया। कामायनी जैसी महाकाव्य की रचना करके प्रसाद जी ने हिंदी - साहित्य को अमर प्रदान किया है। 

































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